Tuesday, 19 May 2020

उत्तराखंड के प्रसिद्ध व्यंजन

उत्तराखंड के प्रसिद्ध व्यंजन

उत्तराखंड की खूबसूरती का हर कोई दीवाना है, लेकिन कहीं ऐसा ना हो कि आप इस खूबसूरती को देखकर उत्तराखंड के प्रसिद्ध व्यंजन ही खाना भूल जाएँ। ऐसा कहा जाता है, कि जो व्यक्ति एक बार उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद चख लेता है, वो कभी उस स्वाद को भूल नहीं पाता है।

पहाड़ी भोजन न सिर्फ स्वाद में आगे होता है, बल्कि यह पौष्टिक भी होता है। इसलिए तमाम लोग आज इसे एक नया रूप दे रहे हैं।

आलू के गुटके

आलू के गुटके विशुद्ध रूप से कुमाऊंनी स्नैक्स हैं। इसके लिए उबले हुए आलू को इस तरह से पकाया जाता है कि आलू का हर टुकड़ा अलग दिखे। इसमें पानी का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता। मसाले मिलाकर इसे लाल भुनी हुई मिर्च व धनिए के पत्तों के साथ परोसा जाता है। स्वाद में वृद्धि के लिए इसमें जख्या के तड़के की अहम भूमिका होती है। आलू के गुटके मंडुवे की रोटी और चाय के साथ भी खाए जा सकते हैं।


aaloo ke gutke
aaloo ke gutke


भांग या तिल की चटनी

भांग या तिल की चटनी बनाने के लिए इनके दानों को पहले गर्म तवे या कढ़ाई में भूना जाता है। फिर इन्हें सिल या मिक्सी में पीसा जाता है। इसमें जीरा पाउडर, धनिया, नमक और स्वादानुसार मिर्च डालकर अच्छे से सभी को सिल में पीस लिया जाता है। बाद में नींबू का रस डालकर इसे आलू के गुटके, अन्य स्नैक्स, रोटी आदि के साथ परोसा जाता है। इस चटनी का स्वाद अलौकिक होता है।


bhaang ki chatni
bhaang ki chatni

कुमाऊंनी रायता

कुमाऊं का रायता देश के अन्य हिस्सों के रायते से काफी अलग होता है। इसे आमतौर पर दोपहर के भोजन के साथ परोसा जाता है। इसमें बड़ी मात्रा में ककड़ी (खीरा), सरसों के दाने, हरी मिर्च, हल्दी पाउडर और धनिए का इस्तेमाल होता है। इस रायते की खास बात छनी हुई छाज (प्लेन लस्सी) होती है।


Kumauni Raita
Kumauni Raita

मंडुवे की रोटी

मंडुवे में बहुत ज्यादा फाइबर होता है। इसलिए इसकी रोटी स्वादिष्ट होने के साथ स्वास्थ्यवद्र्धक भी होती है। मंडुवे की रोटी भूरे रंग की बनती है। क्योंकि इसका दाना गहरे लाल या भूरे रंग का होता है, जो कि सरसों के दाने से भी छोटा होता है। मंडुवे की रोटी को घी, दूध या भांग व तिल की चटनी के साथ परोसा जाता है। कई बार पूरी तरह से मंडुवे की रोटी के अलावा इसे गेंहू की रोटी के अंदर भरकर भी बनाया जाता है। ऐसी रोटी को लोहोटु (डोठ) रोटी कहा जाता है। जबकि, गेहूं के आटे व मंडुवे को मिलाकर जो रोटी बनती है, उसे ढबड़ि रोटी कहते हैं।

MANDUA KI ROTI
MANDUA KI ROTI


कंडाली का साग


कंडाली के साग में बहुत ज्यादा पौष्टिकता होती है। कंडाली को आमतौर पर बिच्छू घास भी कहते हैं। इसकेहरे पत्तों का साग बनाया जाता है। मुलायम कांटेदार होने के कारण कंडाली के पत्तों या डंडी को सीधे नहीं छुआ जा सकता। यह अगर शरीर के किसी हिस्से में लग जाए तो वहां सूजन आ जाती है और बहुत ज्यादा जलन होती है। लेकिन, इसके साग का कोई जवाब नहीं। गांव-देहात के अनुभवी लोग इसे बड़ी सावधानी से हाथ में कपड़ा लपेटकर काटते हैं। काली दाल और चावल के साथ इसकी खिचड़ी भी बेहद स्वादिष्ट होती है।


Kandali Ka Saag
Kandali Ka Saag


काप या काफली

यह एक हरी करी है। सरसों, पालक आदि के पत्तों को पीसकर बनाया जाने वाला काप कुमाऊंनी खाने का अहम हिस्सा है, जिसे गढ़वाल में काफली कहते हैं। इसे रोटी और चावल के साथ लंच और डिनर में परोसा जाता है। यह एक शानदार और पोषक आहार है। काप बनाने के लिए हरे साग को काटकर उबाल लिया जाता है। फिर इन पत्तों को पीसकर पकाया जाता है।


KAAP (AALAN)
KAAP (AALAN)


डुबुक (डुबुके) 


डुबक भी कुमाऊं अंचल में अक्सर खाई जाने वाली डिश है। असल में यह दाल ही है, लेकिन इसमें दाल को दड़दड़ा (मोटा) पीसकर बनाया जाता है। बावजूद यह मास (उड़द) के चैस (चैंसू) से अलग है। डुबक पहाड़ी दाल भट, गहत आदि को पीसकर बनाया जाता है। लंच के समय चावल के साथ डुबुक का सेवन किया जाता है।


गहत (कुलथ) के पराठे


गहत की दाल के पराठे उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पकवान हैं। यह पराठे गहत की दाल को गेहूं या मंडुवे के आटे के मिश्रण में भरकर बनाए जाते हैं। देसी घी, भांग व लहसुन की चटनी या घर के बने अचार के साथ खाने का इसका स्वाद ही निराला है।




फानु (फाणु)


यह एक खास प्रकार का पहाड़ी व्यंजन है। इसके लिए विभिन्न प्रकार की दाल (विशेषकर गहत) रातभर पानी में भिगोई जाती है। फिर इस दाल को अच्छे से पीस कर फाणु बनाया जाता है। गर्म-गर्म चावल के साथ परोसे जाने पर यह व्यंजन अत्यंत स्वादिष्ट होता है। सर्दियों में फाणू-भात उत्तराखंड में बहुत ज्यादा खाया जाता है।




बाड़ी (मंडुवे का फीका हलुवा)

बाड़ी उत्तराखंड के सबसे पुराने व्यंजनों में से एक है। इसे मंडुवे के आटे से बनाया जाता है। बाड़ी में पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। मंडुवे के आटे को पानी में घी के साथ अच्छे से पकाकर इसे बनाया जाता है। इसे फाणू अथवा तिल की चटनी के साथ भी खाया जाता है। घर के घी और फाणू में इसका स्वाद और निखर जाता है।


चैंसू


चैंसू एक प्रोटीन युक्त लाजवाब व्यंजन है, जो कि काली दाल (उड़द) को पीसकर बनता है। यह हर पहाड़ी  के लिए एक लोकप्रिय भोजन विकल्प है। चैंसू बनाने के लिए दाल को सिल या मिक्सी में पीसा जाता है। दाल का अच्छा पेस्ट तैयार कर उसे धीमी आंच पर पकाया जाता है और फिर भात के साथ खाया जाता है। बेहतर स्वाद के लिए इसे लोहे के बर्तन (कढ़ाई) में पकाया जाता है।


थिंच्वाणी

थिंच्वाणी बनाने के लिए पहाड़ी मूला या पहाड़ी आलू को क्रश (थींचा) कर पकाया जाता है। सर्दियों में इसे रोटी या चावल के साथ बड़े चाव से खाया जाता है। जख्या या फरण का तड़का इसका स्वाद और बढ़ा देता है।


अरसा

यह पहाड़ का पारंपरिक मीठा पकवान है। आमतौर पर पहाड़ी शादियों में इसे बनाया जाता है। इसमें गुड़, चावल और सरसों के तेल का इस्तेमाल होता है। पहले चावल को कम से कम तीन-चार घंटे तक भिगोया जाता है और फिर उसे बारीक कूटकर गुड़ की चासनी के साथ पेस्ट बनाया जाता है। इस मिश्रण को छोटे-छोटे गोलों के रूप में तैयार कर तेल में तला जाता है। कहीं-कहीं अरसे तलने के बाद दोबारा गुड़ की चासनी में डाला जाता है। इसे पाक लगाना कहते हैं।


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