परियों की कहानियां बचपन में तो आपने जरूरी पढ़ी और सुनी होगी। कहते हैं परियां बहुत ही सुंदर होती हैं और जिन पर मेहरबान हो जाएं उसे मालामाल बना देती हैं। इंसानों से इनके प्रेम के किस्से भी पहड़ों पर सुनाए जाते हैं। तो किस्सों की दुनिया से आगे निकलते हुए एक ऐसी जगह की ओर चलते हैं जहां आज भी लोग परियों और वनदेवियों को देखने का दावा करते हैं।
परियों की हसीन दुनिया में हम जहां आपको लेकर जा रहे हैं वह दिल्ली से बहुत दूर नहीं है। उत्तराखंड के ऋषिकेश से आप सड़क मार्ग से गढ़वाल जिले के फेगुलीपट्टी के थात गॉव तक किसी सवारी से पहुंच सकते हैं। यहां से पैदल परियों की नगरी तक यात्रा करनी पड़ती है।
थात गांव के पास ही गुंबदाकार का पर्वत है जिसे खैट पर्वत कहते हैं। समुद्रतल से करीब 10000 फीट की ऊचाई पर यह पर्वत जन्नत से कम नहीं है। कहते हैं यहां लोगों को अचानक ही कहीं परियों के दर्शन हो जाते हैं। लोगों का ऐसा मानना है कि परियां आस-पास के गांवों की रक्षा करती हैं।
थात गॉव से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर खैटखाल नाम का एक मंदिर है जिसे यहां के रहस्यों का केन्द्र माना जाता है। यहां परियों की पूजा होती है और जून के महीने में मेला लगता है।
परियों को चटकीला रंग, शोर और तेज संगीत पसंद नहीं है इसलिए यहां इन बातों की मनाही है। यहां एक जीतू नाम के व्यक्ति की कहानी भी काफी चर्चित है। कहते हैं जीतू की बांसुरी की तान पर आकर्षित होकर परियां उसके सामने आ गईं और उसे अपने साथ ले गईं।
यहां एक रहस्यमयी गुफा भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसके आदि अंत का पता नहीं चल पाया है। इस स्थान का संबंध महादेव द्वारा अंधकासुर और देवी द्वार शुंभ निशुंभ के वध से भी जोड़ा जाता है। कुछ लोग अलौकिक कन्याओं को योगनियां और वनदेवी भी मानते हैं।
जो भी है यहां रहस्य और रोमांच का अद्भुत संगम है। अगर रोमांच चाहते हैं तो एक बार जरूर यहां की सैर कर आएं। परियां मिले ना मिले लेकिन आपका अनुभव किसी परिलोक की यात्रा से कम नहीं होगा।
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