उत्तराखंड के पारंपरिक आभूषण..!
शीशफूल :
शीशफूल को महिलाएं जूड़े में पहनती हैं।
मांगटीका : मांगटीका अपने नाम के अनुसार मांग में पहना जाता है। इसे अमूमन किसी त्योहार, देवकार्य, शादी या फिर किसी अन्य शुभकार्य के अवसर पर पहना जाता है।
नथुली :
उत्तराखंड की महिलाओं को विशिष्ट पहचान दिलाती है नाक में पहने जाने वाली कुंदन जड़ी बड़ी नथ। इसके बिना उनका श्रृंगार अधूरा माना जाता है। इसे विशेष तरह की कारीगरी से तैयार किया जाता है। गढ़वाल में टिहरी नथ और छोटी नथ का प्रचलन है। इसे विवाहित महिलाएं पहनती हैं।बुलाक :
उत्तराखंड विशेषकर गढ़वाल की महिलाएं नाक के बीच एक गहना पहनती हैं जिसे बुलाक कहते हैं। इसे अपनी सामर्थ्य के अनुसार छोटा या लंबा बनवाया जाता है। कुछ बुलाक इतनी लंबी होती हैं कि वह ठुड्डी से भी नीचे तक पहुंच जाती हैं। इसे बेसर भी कहा जाता है।फुल्लि :
नाक में पहने जाने वाली लौंग। यह असल में नथ का विकल्प है। नथ को हमेशा नहीं पहना जा सकता है इसलिए महिलाएं इसे उतारकर लौंग या फुल्लि पहनती हैं। यह काफी छोटे आकार की होती है और इसलिए इसे किसी भी समय आसानी से पहना जा सकता है।मुर्खली :
चांदी की बालियां जिन्हें महिलाएं कानों के ऊपरी हिस्से में पहनती हैं।
बाली : सोने के बने कुंडल।
कर्णफूल या झुमकी : झुमकी पहाड़ी महिलाओं का भी पारंपरिक आभूषण है। कर्णफूल भी इसी का एक रूप है। लंबी झूमकी जिसके बीच में नग लगे होते हैं।
गुलबंद या गुलोबंद : गुलुबंद, गुलबंद या गुलोबंद एक आकर्षक जेवर है जिसे सोने की डिजाइनदार टिकियों को पतले गद्देदार पट्टे पर सिलकर तैयार किया जाता है। गुलुबंद गढ़वाली, कुमांउनी, भोटिया और जौनसार की विवाहित महिलाओं का प्रमुख आभूषण रहा है। मंगनी यानि मांगड़ या सगाई के समय पहले गुलबंद पहनाने का ही प्रचलन था। (विस्तार से आगे दिया गया है)
हंसुळी या हांसुळी : चांदी का बना जेवर जो काफी वजनी होता है। इसे प्राचीन समय में अधिक पहना जाता है। महिलाओं के अलावा छोटे बच्चों को भी हंसुळी पहनायी जाती है लेकिन उसका वजन कम होता है। महिलाएं जिस हंसुळी को पहनती हैं उसका वजन तीन तोला तक होता है।
चरेऊ :
यह एक तरह से मंगलसूत्र का ही विकल्प है जिसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। सुहागिन महिला अपने गले में काले मनकों की माला पहनती हैं। इन्हीं मालाओं के बीच में सामर्थ्य के अनुसार चांदी या सोना लगाकर मंगलसूत्र तैयार किया जाता है। इसे चरेनु भी कहा जाता है।तिमाण्यां :
सोने के तीन मनकों से बना गले का आभूषण।
गले के अन्य आभूषणों कंठी, तिलहरी, चंद्रहार, हार, लाकेट आदि शामिल हैं।
पौंची या पौंजी : इन्हें कलाईयों में पहना जाता है। कंगन के आकार के होते हैं जिनमें सोने या चांदी के दाने लगे होते हैं। इन्हें भी गुलबंद की तरह कपड़े की पट्टी पर जड़कर तैयार किया जाता है।
मुंदड़ी : मुद्रिका या अंगूठी। मुंदरि या गुंठी भी कहा जाता है।
धागुली या धागुले : छोटे बच्चों के हाथों में पहनाये जाने वाले चांदी के कड़े। यह सादे और डिजाइनर दोनों तरह के होते हैं।
इनके अलावा स्यूंण, स्यूंणा या सांगल कंधे पर लगाया जाता है जो कि सेफ्टी पिन की तरह होता है। बाजू पर भी एक आभूषण पहनने का प्रचलन रहा है जिसे गोंखले कहा जाता है।
तगड़ी :
चांदी से बना आभूषण जिसे बेल्ट की तरह कमर पर पहना जाता है। पुराने जमाने में महिलाएं हमेशा इसे पहनकर रखती थी क्योंकि कहा जाता था कि लगातार काम करते रहने के बावजूद इससे कमरदर्द नहीं होता है। इसे करधनी, कमरबंद भी कहा जाता है। करधनी यानि सोने चाँदी आदि का बना हुआ कमर में पहनने का आभूषण जिसमें कई लड़ियाँ या पूरी पट्टी होती है।
झिंगोरी, झांजर, इमर्ति, पौटा, पायल, पाजेब और धागुले : पायल चांदी की बनी होती हैं। उत्तराखंड में क्षेत्र के अनुसार इनका आकार प्रकार और नाम बदल जाते हैं। गढ़वाल में महिलाएं चूड़ीनुमा पायल पहनती हैं जिन्हें धगुला या धागुले कहते हैं। पौटा जैसे गहने अब प्रचलन में नहीं हैं।
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