Tuesday, 12 May 2020

नंदा देवी राज जाट यात्रा (NANDA DEVI RAAJ JAAT YATRA)


नन्दा देवी राज जात यात्रा उत्तराखंड में होने वाला अपनी तरह का अनौखा सांस्कृतिक कार्यक्रम है।

यह यात्रा लगभग 12 वर्षो के बाद आयोजित होती हैं। नोटी(चमोली गढ़वाल) से राज जात प्रारम्भ होने के बाद उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों स्थानों गाँवों से वहा के देवी देवताओं के निसाणों छन्तोलियों (छतरी) और डोलियों के साथ यात्रा निकलती है और अलग.अलग स्थानों पर नोटी से आने वाली मुख्य यात्रा में शामिल हो जाती है।

नन्दा उत्तराखंड हिमालय वासियों की लोक देवी है। यहाँ नन्दा को व्याहि गयी बेटी के रूप में पूजा जाता है।

 


माना जाता है कि ऋषा सोम्य हेमन्त ऋषि और मेणा के घर, नन्दा का जन्म हुआ। बचपन में नन्दा का विवाह कैलाश वासी शिव के साथ हुआ।

शिव जी अपने ध्यान में रहते थे। नन्दा को कैलाश में अकेलापन लगता था, वहा उसे अपने मायके की याद आती थी । तब नन्दा को मायके बुलाया जाता था, एक अन्तराल के बाद बड़े प्यार और उल्लास पुर्वक ऋषासों वासी अपनी अराघ्या बेटी को ससुराल भेजते थे|

नन्दा को ससुराल भेजने का ये आयोजन ही राज जात यात्रा कहलाता है।


चौसिगिया खाडू :- 

चौसिगिया खाडू की मान्यता है जब नन्दा देवी दोष लगता है तब ये जन्म लेते है।




नन्दा के लिए उपहार तथा सिंगार चार सींग वाले मेडू के पीठ पर बधे फाचे में डाल दिये जाते है। माना जाता है समुद्रतल से 13200 फुट की ऊंचाई पर स्थित इस यात्रा के गन्तव्य होमकुण्ड के बाद रंग- बिरंगे वस्त्रों से लिपटे इस मेंढे को अकेले ही कैलाश की ओर रवाना कर दिया जाता है।

यात्रा के दौरान पुरे सोलहवें पड़ाव तक यह खाडू या मेंढा नन्दा देवी की रिंगाल से बनी छंतोली के पास ही रहता है।

समुद्रतल से 13200 फुट से लेकर 17500 फुट की ऊंचाई तक पहुंचने वाली यह 280 किमी लम्बी पदयात्रा 19 पड़ावों से गुजर कर वाण गावं में पहुचती हैं|

वाण यात्रा का अन्तिम गाँव है। प्राचीन काल में इसके 22 पड़ाव होने के भी प्रमाण हैं। वाण से आगे की यात्रा दुर्गम होती है और साथ ही प्रतिबंधित है।

पहली राज जात यात्रा का आयोजन कहाँ से हुआ?
नोटि(गढ़वाल) से पहली यात्रा इणाबधाणी(चमोली गढ़वाल) पहुचती है।

रिंगाल के कारिगर छन्तोली तैयार करने के बाद इसे कासुवां के कुवर लोगो को सौप देते हैं इस तरह गांव के लोग अपनी.अपनी तरह छन्तोलीयों को तैयार करते है और उसे सुसज्जित करते है।

कांसुवा के कुवर (चमोली गढ़वाल) नौटी पहुँचकर वहा मनोती (मन्न्त) मांगते है तथा इसी दिन राज जात का दिन वार तय किया जाता है।



 रिंगाल के छंतोलि (छतरी) में मनोति की पोटली बाँधी जाती है। छन्तोली को नोटी और कास्वा के बीच में पड़ने वाले ओघड़ बाबा की समाधी में रखा जाता है।

भोजपत्र की अस्तर लगी छंतोली नन्दा देवी के ससुराल पक्ष की मानी जाती है। और चमकदार रेष्मी वस्त्र से ढकी चकोर छंतोली मायके पक्ष की इन छंतोलियों को नंगे पैर पुरे रिति.रिवाज से ले जाना होता है।

नन्दा देवी को मायके से ससुराल डोली में ले जाया जाता है।

कैलाश यात्रा पर जाने से पहले नन्दा माई ईड़ाबधाणी गांव गयी ससुराल जाते समय नन्दा माई कि नजर इस गांव पर पड़ी उन्हें यह गांव बहुत पसन्द आया। ईड़ाबधाणी गांव में जमनसिंह जदोड़ा नामक व्यक्ति ने उनका आदर सत्कार किया। ईड़ाबधाणी से वापस यात्रा नोटी जाती है तथा वहां रात भर माँ का जागरण होता है।

चांदपुरगढ़ी (चमोली गढ़वाल)-:
चांदपुरगढ़ी (चमोली गढ़वाल) में पूरी यात्रा इक्टठी होती है तथा  वहां पर गढ़वाल और कुमाऊँ की यात्रा का मिलन होता है। यहां पर लोग भारी संख्या में दर्शन के लिए पहुचतें है।

सामन्ती परम्परा के समर्थकों का दावा है कि कांसुवा गांव के लोग गढ़वाल नरेश  अजय पाल के वंशज हैं। वे मानते हैं कि राजा ने जब चांदपुर गढ़ी से राजधानी बदल दी तो कांसुवा में रहने वाले उसका छोटा भाई वहीं रह गया। इसलिए उस गांव के लोग अपनी जाति कुंवर लिखते हैं।


सेम धारकोट (चमोली गढ़वाल )-:
अगला पड़ाव सेम से धारकोट (चमोली गढ़वाल) तक चढ़ाई है। अगला गांव सिमतोलीधार इस स्थान से नन्दा का मायका नोटी नहीं दिखाई देता इसलिए मां वहां पर बार-बार अपने मायक लौटना चाहती है।

दिलखड़ी धार-:
इसके बाद दिलखड़ी धार आता है। यहां पर से नन्दा के ससुराल कैलाश पर नजर पड़ती है। यहां मां छुपने का प्रयास करती है। वह अपने ससुराल नहीं जाना चाहती अगला पड़ाव नन्दकेश्री आता हैं यहां पर कुरूणबधाण (चमोली जिले के घाट विकासखण्ड में स्थित कुरूण का सिद्धपीठ माना जाता है।) और कुमाऊं की यात्रा का मिलन होता है।

नन्दा देवी राज जात यात्रा कब से कब तक चलती है-:
वहा के लोगों के परामर्श  के बाद यह यात्रा वसन्त पंचमी के अवसर पर घोषित कार्यक्रम के बाद यह यात्रा पूरे 19 दिन तक चलती है|

रामेश्वरम तक नन्दा को विदा करने सब लोग आते है। बैडोली गांव के छन्तोली मिलन के समय नौटी के नन्दा के अवतारी अवतरित होते है। और छन्तोली लाने वाले व्यक्ति के गले मिलते है। इसे देवीयों का मिलन माना जाता है।

बद्रीनाथ के कपाटोद्घाटन की ही तरह चमोली गढ़वाल के कासुवा गांव (राजा के छोटे भाई होने के कारण इस गांव का नाम कासुवा पडा़) के कुंवरों और नौटी गांव के उनके राजगुरू नौटियालों ने भी इस बसन्त पंचमी को नन्दादेवी राजजात के कार्यक्रम की घोषणा कर दी।


कांसुवा गांव में राज राजेश्वरी (मां नन्दा) को मन्दिर की जगह राजाओं के मूल घर में दी है तथा इसी गांव के कुंवरों पर नन्दा जात की जिम्मेदारी होती है।

कांसुवा गांव के ठाकुर स्वयं को सदियों तक गढ़वाल पर एकछत्र राज करने वाले पंवार वंश के एक राजा अजयपाल के छोटे भाई के वंशज मानते हैं और इसीलिए वे राजा के तौर पर इस हिमालयी धार्मिक पदयात्रा का नेतृत्व करते है।

टिहरी राजशाही के वंशज भी बसन्त पंचमी के दिन हर साल बद्रीनाथ के कपाटोद्घाटन की तिथि तय करते हैं।

गांव के ऊंपर लाटू देवता का मन्दिर है। लाटू को नन्दा देवी का धर्म भाई माना जाता है।

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English Translation :



Nanda Devi Raj Jat Yatra

Nanda Devi Raj Jat Yatra is a unique cultural program of its kind in Uttarakhand.

This yatra is held after about 12 years. After the start of Raja Jat from Noti (Chamoli Garhwal), the yatra of Chhatolis (Chhatris) and Doliis of Goddesses of Goddesses from different areas of villages of Uttarakhand is set out and included in the main journey coming from Noti to different places. It happens.

Nanda is the folk goddess of Uttarakhand Himalayas. Here Nanda is worshiped as a married daughter.

It is believed that Nanda, the sage Somya Hemant, was born to the sage and Mena. In childhood, Nanda was married to Shiva, the Kailash resident.

Shiva lived in his meditation. Nanda felt lonely in Kailash, where he remembered his maternal grandfather. Then Nanda was called maiden, after a hiatus, great love and gaiety sent her in-laws to her Araghya daughter, a resident of the Rishonas.

This event of sending Nanda to her in-laws is called Raj Jat Yatra.


Chausigiya Khadu :- 

Chausigiya Khadu holds that when Nanda Devi is found guilty, he takes birth.

Gifts and decorations for Nanda are put on the back of the four-horned medu in an enclosure. It is believed that this frog wrapped in colorful clothes is sent to Kailash alone after the destination homkund of this journey situated at an altitude of 13200 feet above sea level.

During the journey till the sixteenth stop, this Khadu or Mendha remains near the Chantoli made from the ringle of Nanda Devi.

Reaching a height of 13200 feet to 17500 feet above sea level, this 280 km long padyatra passes through 19 stops and reaches the village.

Vana is the last village of the yatra. There are also evidence of its 22 halts in ancient times. Traveling beyond Vana is inaccessible and is also prohibited.

Where was the first Raj Jat yatra organized?
The first journey from Noti (Garhwal) reaches Inabdharani (Chamoli Garhwal).

After preparing the Kargala Chantoli of Ringal, it is handed over to the Kuwar people of Kasuwan, in this way the people of the village prepare and equip the Chantolis as their own.

Kuwar (Chamoli Garhwal) of Kansuva reaches Nauti and asks for Manoti (Mant) there and on this day Raj Jat's day is fixed.

The bundle of manotis is tied in the ring's umbrella. The Chantoli is kept in the tomb of Oghad Baba falling between Noti and Kaswa.

Chantoli lining the Bhojpatra is considered to be the in-law side of Nanda Devi. And the Chakor Chantoli covered with shiny red cloth has to be taken with bare feet all over.

Nanda Devi is taken from the maiden to the in-laws' doli.

Before going to Kailash Yatra, Nanda Mai went to Idabdharani village, while visiting her in-laws, Nanda Mai noticed this village, she liked this village very much. In Idabdharani village, a man named Jamansingh Jadoda paid him respect. The journey back from Idabdharani is noti and there is an awakening of the mother throughout the night.

Chandpurgarhhi (Chamoli Garhwal) -:
In Chandpurgarhhi (Chamoli Garhwal), the whole journey takes place and there is a meeting of the journey of Garhwal and Kumaon. People reach here in large numbers for darshan.

Supporters of the feudal tradition claim that the people of Kansuva village are descendants of the Garhwal king Ajay Pal. They believe that when the king shifted the capital from Chandpur Garhi, his younger brother living in Kansuva remained there. Therefore the people of that village write their caste Kunwar.

Bean Dharkot (Chamoli Garhwal) -
The next stop is the climb from Sem to Dharkot (Chamoli Garhwal). The next village Simtolidhar does not see Naka's maika note from this place, so the mother wants to return there again to her Mayak.

Dilkhari Dhar-:
After this, Dilkhari Dhar comes. Naina's in-laws look at Kailash from here. Here the mother tries to hide. She does not want to go to her in-laws's next stop. Nandakeshree comes here to meet Kurunbadhana (considered to be the Siddh Peetha of Kurun located in Ghat development block of Chamoli district) and visit to Kumaon.

How long does the Nanda Devi Raj Jat Yatra last:
After the consultation of the people of this place, this yatra lasts for a full 19 days after the program announced on the occasion of Vasant Panchami.

Everyone comes to see Nanda off to Rameswaram. At the time of Chantoli union of Badoli village, Natta's Nanda incarnate. And the person who brings the Chantoli gets a hug. It is considered the union of goddesses.

Like the inauguration of Badrinath, the kunvars of Kasuwa village (Kasuva Pada being the younger brother of the king) of Chamoli Garhwal and his Rajguru Nautiyals of Nauti village also announced the program of Nandadevi Rajajat on this Basant Panchami.


In Kansuva village, Raj Rajeshwari (mother Nanda) is given the place of temple in the original house of the kings and the kunvars of this village are responsible for the Nanda Jat.

The Thakurs of Kansuva village consider themselves descendants of the younger brother of Ajaypal, a king of the Panwar dynasty who ruled over Garhwal for centuries, and hence led this Himalayan religious march as king.

The descendants of the Tehri monarchy also set the date of Kapatodar of Badrinath every year on Basant Panchami.

The village of Ompar is the temple of Latu Devta. Latu is considered to be the religious brother of Nanda Devi.



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