एक ऐसी वीरांगना जो केवल 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि में कूद पड़ी थी और सात साल तक जिसने अपने दुश्मन राजाओं को कड़ी चुनौती दी थी। 15 से 20 वर्ष की आयु में सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली संभवत विश्व की एक मात्र वीरांगना है। तीलू रौतेली उर्फ तिलोत्तमा देवी भारत की भारत की रानी लक्ष्मीबाई, चांद बीबी, झलकारी बाई, बेगम हजरत महल के समान ही देश विदेश में ख्याति प्राप्त हैं।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड सरकार ने तीलू देवी के नाम पर एक योजना शुरू की है, जिसका नाम तीलू रौतेली पेंशन योजना है। यह योजना उन महिलाओं को समर्पित है, जो कृषि कार्य करते हुए विकलांग हो चुकी हैं। इस योजना का लाभ उत्तराखंड राज्य की बहुत सी महिलायें उठा रहीं हैं।
तीलू रौतेली के पिता का नाम गोरला रावत भूपसिंह था, जो गढ़वाल नरेश राज्य के प्रमुख सभासदों में से थे। गोरला रावत गढ़वाल के परमार राजपुतों की एक शाखा है जो संवत्ती 817( सन् 741) मे गुजर देश (वर्तमान गुजरात राज्य) से गढ़वाल के पौडी जिले के चांदकोट क्षेत्र के गुरार गांव(वर्तमान गुराड गांव) मे गढ़वाल के परमार शासकों की शरण मे आयी।इसी गांव के नाम से ये कालांतर मे यह परमारो की शाखा गुरला अथवा गोरला नाम से प्रवंचित हुई। रावत केवल इनकी उपाधी है। इन परमारो को गढ राज्य की पूर्वी व दक्षिण सीमा के किलो की जिम्मेदारी दी गयी।चांदकोट गढ ,गुजडूगढी आदि की किले इनके अधीनस्थ थे। तीलू के दोनो भाईयो को कत्युरी सेना के सरदार को हराकर सिर काटकर गढ़ नरेश को प्रस्तुत करने पर 42-42 गांव की जागीर दी गयी । युद्ध मे इन दोनो भाईयों(भगतु एवं पत्वा ) के 42-42 घाव आये थे। पत्वा(फतह सिंह ) ने अपना मुख्यालय गांव परसोली/पडसोली(पट्टी गुजडू ) मे स्थापित किया जहां वर्तमान मे उसके वंशज रह रहे है। भगतु(भगत सिंह )के वंशज गांव सिसई(पट्टी खाटली )मे वर्तमान मे रह रहे है।
कुछ ही दिनों में कांडा गाँव में कौथीग (मेला) लगा और बालिका तीलू इन सभी घटनाओं से अंजान कौथीग में जाने की जिद करने लगी तो माँ ने रोते हुये ताना मारा....
तीलू तू कैसी है, रे! तुझे अपने भाइयों की याद नहीं आती। तेरे पिता का प्रतिशोध कौन लेगा रे! जा रणभूमि में जा और अपने भाइयों की मौत का बदला ले। ले सकती है क्या? फिर खेलना कौथीग!
तीलू के बाल्य मन को ये बातें चुभ गई और उसने कौथीग जाने का ध्यान तो छोड़ ही दिया बल्कि प्रतिशोध की धुन पकड़ ली। उसने अपनी सहेलियों के साथ मिलकर एक सेना बनानी आरंभ कर दी और पुरानी बिखरी हुई सेना को एकत्र करना भी शुरू कर दिया। प्रतिशोध की ज्वाला ने तीलू को घायल सिंहनी बना दिया था, शास्त्रों से लैस सैनिकों तथा "बिंदुली" नाम की घोड़ी और अपनी दो प्रमुख सहेलियों बेल्लु और देवली को साथ लेकर युद्धभूमि के लिए प्रस्थान किया।
सबसे पहले तीलू रौतेली ने खैरागढ़ (वर्तमान कालागढ़ के समीप) को कन्त्यूरों से मुक्त करवाया, उसके बाद उमटागढ़ी पर धावा बोला, फिर वह अपने सैन्य दल के साथ "सल्ड महादेव" पंहुची और उसे भी शत्रु सेना के चंगुल से मुक्त कराया। चौखुटिया तक गढ़ राज्य की सीमा निर्धारित कर देने के बाद तीलू अपने सैन्य दल के साथ देघाट वापस आयी. कालिंका खाल में तीलू का शत्रु से घमासान संग्राम हुआ, सराईखेत में कन्त्यूरों को परास्त करके तीलू ने अपने पिता के बलिदान का बदला लिया; इसी जगह पर तीलू की घोड़ी "बिंदुली" भी शत्रु दल के वारों से घायल होकर तीलू का साथ छोड़ गई।
शत्रु को पराजय का स्वाद चखाने के बाद जब तीलू रौतेली लौट रही थी तो जल श्रोत को देखकर उसका मन कुछ विश्राम करने को हुआ, कांडा गाँव के ठीक नीचे पूर्वी नयार नदी में पानी पीते समय उसने अपनी तलवार नीचे रख दी और जैसे ही वह पानी पीने के लिए झुकी, उधर ही छुपे हुये पराजय से अपमानित रामू रजवार नामक एक कन्त्यूरी सैनिक ने तीलू की तलवार उठाकर उस पर हमला कर दिया।
निहत्थी तीलू पर पीछे से छुपकर किया गया यह वार प्राणान्तक साबित हुआ।कहा जाता है कि तीलू ने मरने से पहले अपनी कटार के वार से उस शत्रु सैनिक को यमलोक भेज दिया।
उनकी याद में आज भी कांडा ग्राम व बीरोंखाल क्षेत्र के निवासी हर वर्ष कौथीग (मेला) आयोजित करते हैं और ढ़ोल-दमाऊ तथा निशाण के साथ तीलू रौतेली की प्रतिमा का पूजन किया जाता है।
तीलू रौतेली की स्मृति में गढ़वाल मंडल के कई गाँव में थड्या गीत गाये जाते हैं।
ओ कांडा का कौथिग उर्यो
ओ तिलू कौथिग बोला
धकीं धे धे तिलू रौतेली धकीं धे धे
द्वी वीर मेरा रणशूर ह्वेन
भगतु पत्ता को बदला लेक कौथीग खेलला
धकीं धे धे तिलू रौतेली धकीं धे धेधे..
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English Translation :
Laxmibai Teelu Rauteli of Garhwal
A heroine who jumped into the battlefield at the age of just 15 and for seven years, who challenged her enemy kings. Teelu Rauteli, who fought seven wars at the age of 15 to 20 years, is probably the only heroine in the world. Teelu Rauteli aka Tilottama Devi, the Queen of India, Laxmibai, Chand Bibi, Jhalkari Bai, Begum Hazrat Mahal, are famous in the country and abroad.
Keeping this in mind, the Government of Uttarakhand has started a scheme in the name of Teelu Devi, named Teelu Rauteli Pension Scheme. The scheme is dedicated to women who have become disabled while doing agriculture. Many women of Uttarakhand state are taking advantage of this scheme.
Teelu Rauteli's father's name was Gorla Rawat Bhup Singh, who was one of the prominent councilors of the state of Garhwal. Gorla Rawat is a branch of the Parmar Rajputs of Garhwal who came to the shelter of the Parmar rulers of Garhwal in Gujar village (present-day Gurad village) of Chandkot area of Pauri district of Garhwal in Samvati 817 (AD 741). In the name of this village, this branch of Parmo was later spread under the name of Gurla or Gorla. Rawat is only his title. These Paramaras were given the responsibility of the kilo of the eastern and southern borders of the Garh state. Forts of Chandkot, Gadh, Gujadugadi etc. were under their control. Both brothers of Tillu were defeated by the head of the Katyuri army and beheaded and presented to the King of Fort 42-42. In the war, 42-42 wounds of both these brothers (Bhagatu and Patwa) were inflicted. Patwa (Fatah Singh) established his headquarters in the village Parsoli / Padsoli (Patti Gujadu) where his descendants are currently residing. The descendants of Bhagatu (Bhagat Singh) are currently living in the village Sisai (Patti Khatli).
In a few days, there was a Kothig (fair) in Kanda village, and the girl Tilu insisted to go to Kothig from all these incidents, then the mother taunted crying ....
How are you, dear! You don't miss your brothers Who will take revenge of your father! Ja go to the battlefield and avenge the death of his brothers. Can you take it? Play again kothig!
Tillu's childish mind got these things and he did not stop to go to Kauthig but caught the vengeance. He, along with his friends, started forming an army and started collecting the old scattered army. A flame of vengeance made Teelu an injured lioness, accompanied by the soldiers armed with scriptures and a mare named "Bindali" and departed for the battleground with her two leading friends Bello and Deoli.
First of all, Tilu Rauteli liberated Khairagarh (near present-day Kalagarh) from Kantur, then attacked Umtagarhi, then he reached "Sald Mahadev" with his army and also freed him from the clutches of the enemy army. After setting the border of the stronghold state till Chaukhutia, Tilu returned to Deghat with his army. In Kalinka Khal, there was a fierce battle with the enemy of Tillu, by defeating the Kantyurs in Saraikhet, Tilu avenged his father's sacrifice; At this place, Tilu's mare "Bindali" was also injured by the enemy's warts and left with Tilu.
When Teelu was returning to Rauteli after tasting the defeat of the enemy, he felt rested on seeing the water source, while drinking water in the eastern Nayar river just below Kanda village, he put his sword down and as soon as that water Bowing down to drink, there, humiliated by the hidden defeats, a Kanturi soldier named Ramu Rajwar picked up the sword of Tilu and attacked him.
This hide-and-seek attack on the unarmed Teelu proved fatal. It is said that Teelu sent the enemy soldier to Yamlok before killing his skewer before dying.
In his memory, even today the residents of Kanda village and Birkhal region organize Kauthig (fair) every year and the idol of Tilu Rauteli is worshiped along with Dhol-Damau and Nishan.
Thadya songs are sung in many villages of Garhwal Mandal in memory of Tilu Rauteli.
O Kanda's Kauthig Urio
O Tilu Kauthig said
Dhe dhe dhe dhe tilu roteli dhe dhe dhe dhe
Dwi Veer Mera Ranshur Huawei
Lake Kautig Khella replaced Bhagatu Leaf
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