गुजडू गढ़ी का संक्षिप्त इतिहास
उत्तराखण्ड और उत्तराखण्ड से संबंधित किसी विषय पर इतिहास का लेखा जोखा संपुर्ण नही मिलेगा जितना किताबो मे या देखने को मिलता है वह वर्ष के हिसाब से कुछ सुनी बातो से कुछ अंदाजों से लिखा गया है इसी तरह उत्तराखण्ड मे गढ़ो का इतिहास लिखित मे कुछ नही है पर यह हे काफी वर्षो पुराना ।
कत्युरीयों और पंवार वंश से पहले यहां ठकुरी राजाओं का बोल बाला था यह गढ़ उनके ही इतिहास को दर्शाते है गुजडू गढ़ जो गुजडू परगने मे था यह सभी गढ़ों से अलग है इसके आस पास मनोहारी प्राकृतिक दृश्य बांज और पहाड़ी पेडों से घिरा जंगल एक और जहां दीबा डांडा का जंगल है वही दुसरी और जो दुर दुर तक दुसरे क्षेत्र कुमाऊ और गढ़वाल को आप यहां से अच्छे से देख सकते है।
इसके ठीक सामने सफेद हिमालय खडा निहारता नजर आता है सबसे उपर गढ़ मे माँ भगवती का मंदिर है कहा यह भी जाता है कि जब पांडवों को स्वर्गजाना था तब नुकुल इसी रास्ते आए थे और इस मंदिर का निर्माण किया था तब उसके बाद से यह मंदिर पुरे सीमान्त क्षेत्र की रक्षा कर रहा है ।
आज गुजडू गढ़ के निशान कम ही है पर सबसे बड़ी बात इसके इतिहास को जो जिंदा रखती है वह है गढ़ों के अंदर के रास्ते और कुए जो गुजडू गढ़ी मे नीचे की तरफ सेनिको के छिपने ,भागने या दुश्मन को चकमा देने के लिए बने हे वह देखने लाईक है पहले कुऐ मे अन्दर प्रवेश करते ही ऊपर की और सीढ़ीयां बनी है इसके दोनो और कुएं मिलेगे जो एकदम अंदर जाते समय नही नजर आते अंदेरा होता है जिसमे शुद्व पानी ओर एकदक ठण्डा पानी होगा , कुए छोटे है जिसका कारण था की दुश्मन जब बाहर से अंदर को आए और वही सीढी से ऊपर जाए तब कुए मे छीप कर दुश्मन पर वार किया जा सके अंदर दो रास्ते मिलते है कहते है यह रास्ते अंदर ही अंदर 15 किलोमिटर तक बने है यह अलग अलग दिशा मे बहुत दुर जाकर निकलते है पुराने लोगो ने इसके सबुत भी दिए अंदर ही अंदर सुरंग के इंसान यहां आराम से दुसरी तरफ निकल सकता है क्योंकि अंदर रास्ते मे पानी भी है जिसकी वजह से यहां आक्सीजन की कमी नही होती।
सुंरग और कुए की कारीगरी देखकर लगता है यह किसी उस समय की यह सोच और कलाकारी किसी दिमाग से बनाई होगी। अब इनके से कुछ कुए को चुनाई से बंद कर दिया है ताकि कोई जा नही पाए या फस न जाए । ठकुरी राजाओ के आपसी लडाई के बाद यह गढ़ कुछ समय कत्युरो और रोहिलों के आधीन रहा बाद मे यह कुछ समय तक तीलु रौतेली का सीमांत गढ़ भी रहा जहां से वह अपने सीमा की चौकसी करती थी। बाद मे यह गढ़ पवांर वश के आधीन रहा। गोरखणी राज 1803 से 1814 तक गौरखाओं ने इस गढ़ को तहस नहस कर यहां से काफी मात्रा मे लुटपाट की उसके बाद संधि के तौर पर यह क्षेत्र बिट्रिश गढ़वाल के आधीन आने के बाद से आज तक अपने ऐतिहास को दबाए हुए है दुसरी तरफ आसौ गाड़ से लेकर रसियामाहदेव तक उपजाऊ जमीन तब ठकुरी राजाओं या शासको का यही एक लगान के तौर पर अनाज अपने सैनिको और परिवार के लिए जुटाते थे गुजडू गढ़ी अपने आप मे अलग ही इतिहास रखता है इतना ऐतिहासिक क्षेत्र जो पर्यटक के तौर पर पुरे क्षेत्र का विकास कर सकता है रामनगर से 55 किमी आते समय भौन देवी के दर्शन हो सकते है और फिर गुजडू गढ़ी का ऐतिहासिक गढ़ देखने के बाद दुसरे दिन आराम से दीबा देवी या दीबा गढ़ देखते हुए बुंगी मंदिर के दर्शन करके कोटद्वार होते हुए वापस जा सकते है
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